March 22, 2012

हिन्दू,मुस्सल्मान,सिख,ईसाई


बेचारा हिन्दू, बेचारा मुस्सल्मान ,
बेचारा सिख ,बेचारा इसाई..

जब फटा बम बिच बाज़ार,
सिर्फ लाशें ही नज़र आई.
लहूलुहान धरती,आँख में भर आसू,
सिर्फ ये ही पूछ पाई,

कौन हिन्दू, कौन मुस्सल्मान ,
कौन सिख ,कौन इसाई?

दंगे करे इंसानों ने ,
सजा भगवान् के नाम सुनाई.
लुटा अपनों ने अपनों को,
अपने ही घर को आग लगायी,

ना रहा हिन्दू ,ना रहा मुस्सल्मान,
ना रहा सिख ,ना रहा इसाई.

बाँट कर बनाया गुलाम हमे,
अंग्रेजो ने थी चाल चलायी.
नेता निकला दो कदम आगे,
गरीब की रोटी छीन के खाई.

नादान है हिन्दू,नादान है मुस्सल्मान,
नादान है सिख,नादान है इसाई.

बस हुआ बहुत अब,
सबको साथ चलने की कसम दिलाई.
बहुत खाली चोटें हमने,
अब जाके है बात समझ में आई.

एक है हिन्दू,एक है मुस्सल्मान,
एक है सिख,एक है इसाई.

सात रंगों में मेरा हिंदुस्तान,
इन्द्रधनुष की है परछाई.
फूलो के गुलदस्ते सा मेरा हिंदुस्तान,
एक स्वर में गुंजित हर ऊंचाई,

मै हूँ हिन्दू, मै हूँ मुस्सल्मान,
मै हूँ सिख,मै हूँ ईसाई.

PS-This is my first attempt of poetry in hindi.Communal harmony,as a subject is very close to
my heart.I often wonder,why people lose their senses in the name of religion....

1 comment:

  1. phir se wahi kahungaa.
    umdaa !
    a very good point to load a thought,for moment just think
    WHO we are ?

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