Following is an attempt to highlight the terrible condition roadside dwellers are compelled to survive in, particularly the winters. These are the links to two events serving a very noble cause -- Donating all your old clothing to the needy around you.
Do visit and spread some warmth rather smiles in disguise.
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आज भोजन उपरांत
हाथ पानी में डाला ही था
अब क्या व्याख्या करूँ ज़नाब
रूह का मेरे लिए हवाला ही था |
कह गयी, "आ, तुझे अपने आग़ोश में लूं !
वाह ! यह कैसी उदासीनता ?
तेरे प्रतिरोध का जवाब मैं क्यूँ दूं ?"
प्राप्त हो तो सड़कों पर कर ले
पल भर का चलना
यह सिहरन, यह कम्पन
यह झट से फूटता आक्रोश
यह रंग और गहरे भर ले |
सवाल करने के काबिल तू नहीं
ना तू समझा, ना जिया
वहाँ जहाँ सिर्फ शीत लहर बही
हाँ, वहीँ, जहाँ खुले आसमान तले
दुनिया समाई है ,
जहाँ ज़िंदगी खाट की गाँठ सी बुनी
सच पूछो तो चटखती सीख सच्चाई है |
देख ले ज़िंदगी झुलसती हुई
हाँ तेरी चाय की प्याली की तरह
बस फर्क इतना है की तुझे कोई डरकर नहीं
और बाहर उनके साथ,
ना था कोई, न है कोई |
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Pardon me for typing this bad Hindi. My apologies !
bhai faad../
ReplyDeleteno words to describe it!!1
kya VYAAKHYAA ki hai is kavi ne...
ReplyDeletevery well written..
Mohit and Chetan
ReplyDeleteThanks bhaiyon !